उत्तरकाशी के इन गांवों से निकलता है आत्म निर्भर भारत बनने का रास्ता
भारत के हर किसान के आय दुगनी करने के लिए मा.पंतप्रधान मोदी हर संभव प्रयास कर रहे है. और यह कोई असंभव और बहुत दुर्लभ कार्य नहीं है. देशके अनेक गावोंके कीसानोने इसे कर दिखाया है. जब किसान अपने पारम्पारिक किसानी को बागबानी और पशुपालन की जोड़ देता है तो यह संभव हो जाता है. उत्तरकाशी के टकनौर पट्टी क्षेत्रका यह दे. जागरण ने दिया हुआ ख़ास रिपोर्ट
टकनौर के जगमोहन को मोदी ने किया सम्मानित
टकनौर पट्टी के गोरसाली गांव के 56 वर्षीय जगमोहन सिंह राणा को इसी वर्ष राष्ट्रीय कृषि कर्मण का सम्मान मिल चुका है। इस सम्मान से इसी वर्ष दो जनवरी को कर्नाटक के तुमकुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जगमोहन को नवाजा है। जगमोहन ऐसे किसान हैं, जिन्होंने नौकरी छोड़कर गांव की माटी में रोजगार तलाशा और अपनी कर्मठता से आत्मनिर्भरता की मिसाल बन गए। इस सम्मान स्वरूप उन्हें दो लाख की राशि प्रदान की गई। यह सम्मान उन्हें गेहूं व दलहनी फसलों के बेहतर उत्पादन के लिए दिया गया। खेती-किसानी के जरिये उन्नति के पथ पर अग्रसर यह प्रगतिशील किसान उन युवाओं के लिए भी प्रेरणा को स्रोत है, जो खेती को बंजर छोड़ रोजी के लिए शहर-शहर भटक रहे हैं। जगमोहन राणा हर वर्ष खेती किसानी से तीन लाख की आय अर्जित करते हैं।
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर की दूर टकनौर पट्टी के आठ गांव ऐसे हैं, जहां हर व्यक्ति खुशहाल है। इनकी खुशहाली का राज खेती-किसानी, बागवानी, पशुपालन है। इन लोगों की आजीविका पर कोरोना महामारी के लॉकडाउन असर नहीं पड़ा है। टकनौर पट्टी के बार्सू, रैथल, नटीण, द्वारी, पाही, गौरसाली, जखोल, पाला की महिलाओं से लेकर पुरुष तक हर व्यक्ति देश की उन्नति का सारथी बनकर आत्मनिर्भर भारत बनाने में अपनी भूमिका निभा रहा है। इन गांवों 800 से अधिक परिवार निवास करते हैं। जिनमें 95 फीसद परिवार परिवार खेती किसानी के स्वरोजगार से जुड़े हुआ हैं।
अपने बूते स्वावलंबी बना बार्सू गांव
उत्तरकाशी सीमांत ब्लॉक भटवाड़ी के टकनौर पट्टी के बार्सू गांव में 160 परिवार हैं। सभी परिवार गांव में ही निवास करते हैं। इस गांव से 32 ग्रामीण सरकारी सेवाओं में है। प्रसिद्ध दयारा बुग्याल का बेस कैंप भी यह गांव है। गांव के 10 परिवार पूरी तरह से पर्यटन व ट्रैकिंग के व्यवसाय से जुड़े हैं। जिसमें पांच परिवार गांव में गेस्ट हाउस चलाते हैं। गांव के 90 फीसद परिवार सब्जी उत्पादन करते हैं। 60 परिवारों ने सब्जी उत्पादन के लिए गांव में पॉलीहाउस भी लगाए हैं। इस गांव में आलू, राजमा और चौलाई की अच्छी पैदावार होती है। एक सीजन में इस गांव के ग्रामीण 100 ट्रक आलू तथा पांच सौ कुंतल राजमा बेचते हैं। गांव में दस परिवार भेड़ पालन करते हैं। इन परिवारों के पास तीन हजार भेड़ हैं, जबकि तीन परिवार मछली पालन करते है। गांव के गांव के छह परिवार मौन पालन करते हैं। करीब दस कुंतल शहद केवल बार्सू गांव से निकलता है।
बार्सू निवासी एवं भाजपा नेता जगमोहन सिंह रावत कहते हैं कि उनके पास मौन पालन के करीब तीन सौ बॉक्स हैं। इन बॉक्सों में चक्र के रूप में मधु मक्खी अपना नया घर बनाती हैं। इसी तरह से गांव के अन्य पांच परिवारों के पास भी है। मौन पालन के साथ खेती बागवानी और पशुपालन भी करते हैं।
पर्यटक गांव के रूप में भी है रैथल की पहचान
टकनौर पट्टी में आने वाला रैथल गांव भी दयारा बुग्याल का बेस कैंप गांव है। इस गांव में 170 परिवार निवास करते हैं। खेती-किसानी के साथ पर्यटन व और होम-स्टे गांव खुशहाली का प्रतीक बन चुका है। रैथल गाँव में आलू और मटर की खेती अच्छी होती है। इसके अलावा व नकदी फसलों का भी अच्छा उत्पादन होता है। इस गांव में हर परिवार के औसतन 20 कुंटल आलू का उत्पादन होता है। गजेंद्र सिंह राणा कहते हैं कि उन्होंने गांवों में सेब का बगीचा तैयार किया है। सेब की उस प्रजाति को चुना है जो उनके क्षेत्र में हो सकती है। इसके अलावा नकदी फसलों का उत्पादन और पारंपरिक फसलों का उत्पादन भी कर रहे हैं, जिससे उनके परिवार की आजीविका चल रही है।
गांव के विजय सिंह राणा कहते हैं कि नकदी और पारंपरिक फसलों के अलावा आजीविका को बेहतर ढंग से चलाने के लिए उन्होंने गांवों में होम स्टे तैयार किया है। दयारा बुग्याल जाने वाले पर्यटक होटल में ठहरने के बजाय हो होम स्टे में ठहरना पसंद करते हैं। गांव के अन्य परिवार भी इसी तरह से खेती किसानी, बागवानी और पर्यटन के व्यवसाय में जुड़े हुए हैं।
कर्म योगी गांव गोरसाली
इस खुशहाली को लाने वाले कोई नेता नहीं, बल्कि इस गांव के कर्म योगी हैं। इस गांव में 200 परिवार हैं। जिसमें 80 फीसद परिवार खेती किसानी से जुड़े हुए हैं। जो नगदी फसलों के उत्पादन, पशु पालन, मुर्गी पालन कर रहे हैं। इन्हीं के कर्म योग न सिर्फ इस गांव की खूबसूरती बढ़ती है, बल्कि औरों को भी उन्नति की राह बताती है। गांव के 54 वर्षीय जयपाल चौहान कहते हैं कि टमाटर, मटर, फूलगोभी, बंद गोभी, शिमला मिर्च, छप्पन कद्दू के अलावा आलू और मटर अच्छी मात्रा में उत्पादित हो रहा है
इसी गांव के 60 वर्षीय जयेंद्र सिंह राणा कहते हैं कि गोरसाली गांव में आलू और मटर की पैदावार भारी वृद्धि हुई है। इस जुलाई माह में 350 टन आलू की पैदावार होने का अनुमान है। जबकि बीते सीजन में मटर की पैदावार 60 टन के करीब हुई। 48 वर्षीय वीरेंद्र राणा कहते हैं कि हर दिन उनके गांव से करीब 100 लीटर दूध दुग्ध संघ के आंचल डेयरी को जाता है।
ये गांव भी हैं स्वावलंबी
टकनौर के पट्टी में बार्सू, रैथल, गोरसाली के अलावा द्वारी, पाही, पाला, जखोल गांव भी स्वावलंबी गांव हैं। इन गाँवों में टमाटर, मटर, फूलगोभी, बंद गोभी, शिमला मिर्च, छप्पन कद्दू के अलावा आलू और मटर अच्छी मात्रा में उत्पादित हो रहा है। उत्पादन बढ़ने और उत्पादित सामान का सही मूल्य मिलने का कारण के कारण काश्तकारों की आजीविका बेहतर ढंग से चल रही है। इनके सामने लॉकडाउन में न तो नौकरी जाने का जोखिम आया और न इन काश्तकारों को आर्थिक तंगी झेलनी पड़ी।
सामाजिक संगठनों की रही खास भूमिका
उत्तरकाशी के टकनौर के आठ गांवों के ग्रामीणों की आजीविका को मजबूत करने के लिए विभिन्न सामाजिक संगठनों ने बेहतर कार्य किए हैं। जिन्होंने ग्रामीणों खेती किसानी की नई तकनीकी से रूबरू कराया और नगदी फसलों के लिए प्रेरित किया। इन संस्थाओं के सहयोग से ग्रामीण काश्तकारों ने केंद्रीय आलू अनुसंधान केंद्र कुफरी शिमला, गोविंद बल्लभ पंत विवि पंतनगर, विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान केंद्र अल्मोड़ा व कृषि विज्ञान केंद्र चिन्यालीसौड़ सहित कई संस्थानों में नई तकनीकी का प्रशिक्षण लिया। इन संस्थानों में काश्तकारों ने खाद, मिट्टी, पॉलीहाउस, उत्पादन फसल चक्र, बीज की महत्वता के बारे में जाना। इन गांव में महिलाओं के साथ पुरुषों की भी दिनचर्या भी खास है। सुबह उठकर महिलाओं का पहला कार्य गाय-भैंस का दूध निकालना है। घर से उस दूध को डेरी केंद्र तक पहुंचाने की जिम्मेदारी पुरुषों की है। महिलाएं अगर खेतों में निराई गुड़ाई करने के लिए गई हैं तो पुरुषों का कार्य घर में उनके लिए भोजन तैयार करना। पॉलीहाउस में सिंचाई व पशुओं को चारा पानी देने का है। ये ग्रामीण सुबह से लेकर शाम तक अपने अपने रोजमर्रा के कार्यों में व्यस्त रहते हैं।
सौजन्य : दे. जागरण
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