Ground Report- आत्मनिर्भर भारत
उद्यमी युवकको औषधीय पौधों ने दिखाई समृद्धि की राह, कई राज्यों तक फैला कारोबार
झारखंड के बोकारो जिले के कसमार प्रखंड के दांतू निवासी प्रसेनजीत कुमार ने अपने ज्ञान का उपयोग नौकरी के लिए नहीं, बल्कि स्वरोजगार के लिए किया। वह कृषि में स्नातक हैं। इसलिए आत्मनिर्भर बनने के लिए उन्होंने खेती को ही प्राथमिकता दी। कारोबार का दायरा बढ़ा तो आमदनी भी बढ़ गई। फिर उन्होंने 250 युवाओं व दर्जनों महिलाओं को रोजगार दिया। शुरुआत में उन्होंने औषधीय पौधे स्टीविया के कुछ पत्ते चेन्नई से मंगवाए थे।
शोध किया तो इसके गुणों के बारे में पता चला। इसके बाद वे चेन्नई गए और इसकी खेती से संबंधित प्रशिक्षण लिया। फिलहाल 14 एकड़ में इसकी खेती हो रही है। पत्ते की छंटाई व पैकिंग महिलाएं करती हैं। फरवरी 2020 में एक एकड़ जमीन पर नोनी के लगभग 50 पौधे लगाए। वे इसका जूस का उत्पादन कर रहे हैं। इनका कारोबार कई राज्यों में फैल गया है। प्रसेनजीत उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री भी कर रहे हैं।
बिहार के किसानों को किया प्रेरित
प्रसेनजीत ने 2019 में झारखंड राय यूनिवर्सिटी रांची से कृषि में स्नातक की डिग्री हासिल कर खेती की ओर कदम बढ़ाया। उन्होंने स्टीविया के औषधीय गुणों के बारे में पता लगाया। इसकी खेती का प्रशिक्षण लिया। फिर पिता के सहयोग से बिहार के गया निवासी ओंकार प्रसाद, नवादा के असर्फी मिया, शिव प्रमाण मेहता, रोहतास के लवकेश कुमार, डेहरी के रामनाथ चौधरी, समस्तीपुर के उदय परवेश राय, दरभंगा के भीष्म यादव के अलावा बोकारो जिले के दांतू निवासी किसानों से संपर्क साधा। उन्हें इसकी व्यावसायिक खेती के लिए प्रेरित किया। किसानों ने सलाह पर ध्यान दिया। प्रसेनजीत ने इन किसानों से पांच वर्ष का करार किया। फिर चेन्नई के एक फर्म से पौधे उपलब्ध कराए। खेती की विधि बताई।
किसान हर तीन माह पर इसके स्टीविया के पत्ते तोड़ते हैं। इसे सुखाकर उपलब्ध कराते हैं। प्रसेनजीत अपने घर में ही इसकी पैकिंग कराते हैं। गांव की 15 महिलाएं छंटाई और पैंकिंग करती हैं। हर महिला को प्रतिमाह तीन से चार हजार रुपये की आमदनी होती है। वहीं 250 युवा कमीशन एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं।
शोध किया तो इसके गुणों के बारे में पता चला। इसके बाद वे चेन्नई गए और इसकी खेती से संबंधित प्रशिक्षण लिया। फिलहाल 14 एकड़ में इसकी खेती हो रही है। पत्ते की छंटाई व पैकिंग महिलाएं करती हैं। फरवरी 2020 में एक एकड़ जमीन पर नोनी के लगभग 50 पौधे लगाए। वे इसका जूस का उत्पादन कर रहे हैं। इनका कारोबार कई राज्यों में फैल गया है। प्रसेनजीत उत्पादों की ऑनलाइन बिक्री भी कर रहे हैं।
महाराष्ट्र व ओडिशा तक फैला कारोबार
किसान हर तीन माह पर इसके स्टीविया के पत्ते तोड़ते हैं। इसे सुखाकर उपलब्ध कराते हैं। प्रसेनजीत अपने घर में ही इसकी पैकिंग कराते हैं। गांव की 15 महिलाएं छंटाई और पैंकिंग करती हैं। हर महिला को प्रतिमाह तीन से चार हजार रुपये की आमदनी होती है। वहीं 250 युवा कमीशन एजेंट के रूप में काम कर रहे हैं।
प्रसेनजीत का कारोबार बिहार के पटना, गया, भागलपुर, उत्तर प्रदेश के प्रयागराज, अयोध्या, महाराष्ट्र के औरंगाबाद, पुणे, अहमदनगर, बेंगलुरु, मध्य प्रदेश के इंदौर, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर एवं ओडि़शा के कटक तक फैला है। प्रत्येक वर्ष उनकी आय लगभग डेढ़ से दो लाख रुपये हो जाती है। पहले वर्ष में ही लागत वसूल हो गई। अगले चार वर्ष तक सिर्फ मुनाफा होगा। हर माह पांच से छह क्विंटल स्टीविया की बिक्री होती है। 50 ग्राम स्टीविया के पैकेट की कीमत 99 रुपये रखी गई है।
नोनी जूस का उत्पादन
उन्होंने फरवरी 2020 में एक एकड़ जमीन पर नोनी के लगभग 50 पौधे लगाए। इनमें 16 पौधे बचे हैं। इससे वह जूस निकालते हैं। इसका उत्पादन कैसे बढ़ सकता है, इस पर वह शोध कर रहे हैं। जूस से इसका आयुर्वेदिक दवा तैयार कर रहे हैं। अब तक इसका व्यवसायिक उत्पादन शुरू नहीं किया गया है।
स्टीविया व नोनी के औषधीय गुण
प्रसेनजीत कुमार बताते हैं नोनी का रस हृदय को स्वस्थ रखने, कैसर रोग से बचाने, रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने, तनाव मिटाने में सहायक होता है। इसमें पर्याप्त मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट, विटामिन सी, विटामिन बी-3, विटामिन ए और आयरन पाया जाता है। यह कई बीमारियों को ठीक करने में प्रभावी होता है। स्टीविया को मीठी तुलसी भी कहा जाता है। यह अधिकतर उत्तर और दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय भागों में उगता है। इसमें एंटी ऑक्सिडेंट यौगिक होता है। यह मधुमेह रोगियों के लाभकारी है। यह उच्च रक्तचाप को भी नियंत्रित करने में सहायक है।
सौजन्य- दैनिक जागरण
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