Ground Report- Nai Manzil- For Minorities
भारत सरकार का नई मंजिल प्रोग्राम, जिसका 50 हजार से अधिक अल्पसंख्यक वर्गकि महिलाओ ने उठाया लाभ
नई मंजिल भारत सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय द्वारा चलाया जाने वाला एक ऐसा प्रोग्राम है, जिसकी बदौलत कई अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं ने अपने जीवन में नया सवेरा किया है। इस प्रोग्राम के तहत अल्पसंख्यक वर्गकी महिलाओं जिनकी शिक्षा कोई कारणवश पूरी नहीं हो पायी है उनको शिक्षा पूरी करने का अवसर और कौशल प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर बनने में मदद की जाती हैI विश्व बैंक ने इस कार्यक्रम के लिए 5 करोड़ डॉलर का ऋण दिया है। ये कार्यक्रम देश के 26 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में चल रहा है। संयुक्त राष्ट्र की वेब साईटपर लिखे एक ब्लॉग में विश्व बैंक की वरिष्ठ शिक्षा विशेषज्ञ मार्गेराइट क्लार्क और शिक्षा सलाहकार प्रद्युम्न भट्टाचार्जी लिखा है की इस योजना के अंतर्गत अब तक 50 हजार से अधिक अल्पसंख्यक महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाया गया है। इसी ब्लॉग में उन्होंने उन महिलाओं की कहानी को साझा किया गया है जिन्होंने इसयोजना के अंतर्गत मिले प्रशिक्षण से अपने जीवन को संवारा है। इस योजना के अंतर्गत कौशल्य प्रक्षिक्षणका पहला बैच 2017 में अपना प्रशिक्षण पूरा कर सामने आया था।
समीरा उन महिलाओं में से एक है जिसने इस योजना का हिस्सा बन इससे काफी कुछ सीखा और फिर अपने जीवन को संवारा। समीरा के मां-बाप काफी गरीब थे। 14 वर्ष की उम्र में ही समीरा ने पढ़ाई लिखाई छोड़ दी थी। इसके बाद उसकी शादी कर दी गई और वो अपने पति के घर केरल के मलप्पुरम जिले में चली गई। उसका पति मछुआरे समुदाय से ताल्लुक रखता है। शादी के बाद समीरा भी दूसरी महिलाओं की ही तरह घर के काम काम में उलझती चली गई। परिवार के लिए खाना बनाना, घर की साफ-सफाई करना बस यहीं तक उसकी जिंदगी सिमट कर रह गई थी। फिर एक दिन उनके यहां पर भारत सरकार के कार्यक्रम ‘नई मंजिल- नव क्षितिज’ नामक योजनाने दस्तक दी।
समीरा ने इस योजना में हिस्सा लेने के लिए जब अपने पति से बात की तो उसने भी इसकी इजाजत दे दी। यह पल उसके लिए बेहद खास था। उसने इस योजना के तहत टेलरिंग का काम सीखा और करीब डेढ़ वर्ष के बाद तीन अन्य महिलाओं के साथ मिलकर अपनी एक टेलरिंग की दुकान शुरू की। इस दुकान का नाम उसने बिस्मिल टेलरिंग रखा। कुछ समय बाद उसका काम भी अच्छा चल निकला। वहां पर रहने वाले मछुआरों के समुदाय से उसके पास काफी काम आता था। समीरा के मुताबिक लोगों को उनका काम पसंद आया और इस तरह से उनकी कमाई में भी बढ़ोतरी होने लगी। हालांकि कोविड-19 की शुरुआत होने के बाद राज्य में लगाए गए लॉकडाउन से उसके काम पर भी विपरीत असर पड़ा और काम मिलना बंद हो गया। इससे सब तरफ निराशा छा गई थी।
क्लार्क और भट्टाचार्य ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि चार माह के बाद जब उनकी समीरा से बात हुई थी उसकी आवाज में खुशी साफ छलक रही थी। उसने बताया कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद उन्हें मास्क बनाने के आर्डर मिले थे। समीरा के मुताबिक उन्हें पहले तो इस बात पर यकीन नहीं आ रहा था लेकिन ये सच था। उनकी दुकान पर भी सभी कारीगर नहीं आ रहे थे। लॉकडाउन के बाद उनकी छोटी सी दुकान एक बार फिर मुनाफे की राह पर चल निकली थी। ब्लॉग में लिखा है कि उसकी जोशभरी आवाज और आत्मविश्वास से दोनों काफी हैरान थे और खुश भी थे। इस योजना से समीरा में जो आत्मविश्वास पैदा हुआ और जो उसने यहां से पाया उससे इस योजना का मकसद भी सार्थक हो गया था। समीरा को लगने लगा था कि वो मुश्किल घड़ी से निकलकर अब आगे बढ़ सकती है। लॉकडाउन के दौरान घर के हालात काफी खराब हो चुके थे। उसका पति भी मछली पकड़ने समुद्र में नहीं जा पाता था, लेकिन अब उसके दिन एक बार फिर से बदल गए हैं।
समीरा की तरह ही कौसर जहां ने भी इस योजनामे प्रक्षिक्षण पाकर से खुद को आत्मनिर्भर बनाया है। हैदराबाद में रहने वाली कौसर के तीन बच्चे हैं। उसके परिवार में कुल नौ सदस्य हैं। कौसर की महज 17 वर्ष की उम्र में ही शादी हो गई थी। इस वजह से उसकी पढ़ाई भी छूट गई थी। उसका पति बिजली मैकेनिक का काम करता है। नई मंजिल कार्यक्रम की बदौलत उसने पढ़ाई की और बाद में उसको एक सरकारी अस्पताल में उसको काम भी मिल गया। वहां पर अब वो मरीजों की देखभाल करती है। कोविड-19 की वजह से जहां सब कुछ बंद था और लोगों का रोजगार खत्म हो गया था, ऐसे में अस्पताल से मिलने वाले रुपयों से कौसर को एक नया आत्मविश्वास मिला।
आज वो इसकी बदौलत अपने परिवार का पेट पाल रही है। हालांकि लॉकडाउन के दौरान उन्हें भी अस्पताल आने की मनाही थी लेकिन उन्हें इस दौरान आधी तनख्वाह मिलती रही। अपने पूरे परिवार का पेट भरने के लिए ये पैसा उसके लिए वरदान साबित हुआ है। इस योजना का लाभ उठाने वाली कौसर और समीरा की तरह और भी महिलाएं हैं। ये महिलाएं आज हैदराबाद के पुराने इलाके में होने वाले वैक्सीनेशन प्रोग्राम, टेस्ट रिपोर्ट समझाने, रक्तचाप की जांच करने व बीमार लोगों को डॉक्टर से सलाह लेने जैसी मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रही हैं।
समीरा अपने टेलरिंग के काम के अलावा मछुआरों के समुदाय की भलाई में लगी हैं। इसके अलावा वो महामारी से प्रभावित प्रवासियों और अन्य गरीब लोगों को खाना खिलाने के लिये स्थापित की गई रसोई में भी मदद करती हैं। समीरा मानती है कि इस योजनाने उस जैसी कई दूसरी महिलाओं को सशक्त करने का काम किया है। उसका ये भी मानना है कि शिक्षा, कौशल और बाहरी दुनिया से संपर्क से जीवन-परिवर्तन योग्य सशक्तिकरण सम्भव है। इससे महिलाओं को फलने-फूलने व उनकी पूर्ण क्षमता बाहर लाने में मदद होती है। समीरा अब आगे पढ़ाई करने और एक बेहतर उद्यमी बनने की योजना पर काम कर रही है। वो चाहती है कि अन्य महिलाएं भी उसके साथ आगे बढ़ें।
यह पूरी खबर मूल अंग्रेजीमे निचे दिए हुए ब्लॉग में पढ़ी जा सकती है
Empowering minority women in India: Stories of resilience and hope during the COVID crisis
By MARGUERITE CLARKE PRADYUMNA BHATTACHARJEE
AUGUST 21, 2020
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