क्या तेलकी बढती कीमतों को रोकने के लिए भारतको रशियाके साथ अपने मैत्रीपूर्ण सम्बंधोंका फायदा होगा ?

Expert Opinion विशेषग्य राय

क्या तेलकी बढती कीमतों को रोकने के लिए भारतको रशियाके साथ अपने मैत्रीपूर्ण सम्बंधोंका फायदा होगा ?

लेखक प्रा. विनायक आंबेकर दिनांक १८ मार्च २०२२

यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद से अंतरराष्ट्रिय बाजारमे क्रूड ऑयल की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है। भारत क्रुड ऑयल की अपनी जरुरत के ८० % के लिए आयात पर अवलंबित है I इसीलिए अंतर राष्ट्रीय बाजार में बढ़ी कीमतोका भारी असर भारत पर भी पड़ा है। तेलकी बढती कीमत का असर भारत के अर्थव्यवस्थापर दिखने लगा है और यदि कीमते और बढ़ी तो उसका दूरगामी असर भारतके अर्थ्व्यव्स्थापर निश्चित रूपसे होगा I ऐसेमें भारत रशियाके साथके अपने दोस्तानेको सामने रखकर कुछ कदम जरुर उठा रहा है I अमेरिकी प्रतिबंधों से जूझ रहे रूस ने भारत को कम कीमतों पर क्रूड ऑयल और कमोडिटी देने का प्रस्ताव दिया है। भारत भी इस डील को लेकर काफी सीरियस है। तो जानते है इस विषय के विविध अंग I

भारतकी विद्यमान तेल इम्पोर्ट की स्थिति

भारत अपनी जरूरत का ८०  % क्रूड ऑयल इंपोर्ट करता है। इसमें से ६० % खाड़ी देशों से लेता है। क्रूड ऑयल इंपोर्ट करने के लिए भारत सऊदी अरब और अमेरिका पर ज्यादा निर्भर है। भारत इसके अलावा इराक, ईरान, ओमान, कुवैत और रूस से भी तेल लेता है और कुछ स्पॉट मार्केट यानी खुले बाजार से भी खरीदता है। भारत फिलहाल रशियासे अपने इम्पोर्ट के सिर्फ २ % क्रूड ऑयल ही इंपोर्ट करता है। साथ ही भारत रूस से सालाना ३  अरब डॉलर के अन्य पेट्रोलियम उत्पादों का इंपोर्ट करता है।

भारत और रशियाके बीच तेलसे सम्बंधित स्थिति

भारतीय तेल कम्पनियोने रशियामें २०२० में ही १६  अरब डॉलर का निवेश किया है I इस निवेशसे कुछ तेल के कुएं खरीदे हैं। हालाकि अभीतक इस तेल को यह तेल कंपनिया वहीं बेच देती हैं। रूस की सबसे बड़ी तेल कंपनी रॉसनेफ की गुजरात के जामनगर में अपनी रिफाइनरी है। रॉसनेफ अभी रशियासे भारत की कुल तेल खपत का सिर्फ २% क्रूड तेल रिफायनिंग के लिए  मंगाती है। इसीलिए भारत रशियासे अपने कुल खपतका  सिर्फ २% तेल लेता है, क्योंकि बाकी जगह से इसे लाना ज्यादा आसान है। एक खबर ऐसी भी आ रही है की  देश की सबसे बड़ी पेट्रोलियम मार्केटिंग कंपनी इंडियन ऑयल ने भी रूस से सस्ती कीमतों पर 30 लाख बैरल क्रूड ऑयल की खरीद की है। बताया जा रहा है कि एक ट्रेडर के माध्यम से यह सौदा प्रति बेरल २० से २५ डॉलर की छूट पर हुआ है।

अमेरिकी निर्बंधोंके चलते रशियाके के तेल के दामों में ४०% तक की कमी आ चुकी है। रशियाको अपनी उत्पादित तेलको निर्यात करनेमे बहुत मुसीबते आ रही है I निर्बंधोंके चलते अंतर्राष्ट्रिय तेल व्यापारी रशियासे तेल नहि खरीद रहे है I इसीलिए भारतके साथ अपने मित्रपूर्ण सम्बंधोंको उजागर करते हुए रशियाने यह ऑफर भारत को दिया है I

रशियासे तेल खरीदनेके बारेमे स्थिति

अमेरिकी प्रतिबंधों के बीच भारत, रूस से और क्रूड ऑयल की खरीद कर सकता है। क्योंकि अमेरिका ने भी हाल में कहा है कि यदि भारत रूस से क्रूड ऑयल लेता है तो उसे कोई आपत्ति नहीं है। साथ ही इससे किसी प्रतिबंध का भी उल्लंघन नहीं होता है।

मगर रशियाके के वह क्षेत्र जहां कूड ऑयल का उत्पादन होता है वे ईस्टर्न इलाके से थोड़ा दूर और नॉर्थ वाले इलाके आर्कटिक क्षेत्र के पास हैं। ऐसे में यहां ज्यादातर समय बर्फ जमी रहती है जिससे तेल लाने में दिक्कत होती है। जिसमे समय जादा और किराया बहुत लगता है I रशियासे तेल लाने का अन्य रास्ता ब्लैक सी का है जो इस समय यूक्रेन पर रूस के हमले के कारणसे बंद पड़ा हुआ है। जब हम खाड़ी देशों से क्रूड ऑयल लेते है तो समुद्री जहाज से यह तेल सिर्फ 3 दिन के अंदर भारत पहुंच जाता है। इससे किराया भी कम लगता है। इसीलिए रशियासे क्रूड लेने में ट्रांसपोर्ट एक बड़ी समस्या है I

अमेरिकाने रशियापर लगाए निर्बंधोंके चलते आने वाले समय में ऑयल टैंकर मिलने मुश्किल होंगे I  तेल के ट्रांसपोर्ट में टैंकर बहुत महत्वपूर्ण है उसमेही करोड़ों रुपए का तेल लाया जा सकता है I साथमे उसका इंश्योरेंस भी कराना होता है। इन टैंकरों का इंश्योरेंस करने वाली कंपनियां पश्चिमी देशों की हैं। ऐसे में जब प्रतिबंध लगा होने पर वे टैंकर का इंश्योरेंस नहीं करेंगी। ऐसे में रशियासे तेल लाना वास्तव में कितना व्यवहारिक होगा यह बड़ा सवाल सरकारके सामने है ।

इन सभी सवालोंको ध्यान में रखते हुए भारतकी सरकार रशियासे तेल खरीदनेके बारेमे उपलब्ध सभी विक्ल्पोंपर काम कर रही है I भारतमें ५.२ मिलियन बैरल तेल की खपत रोज होती है। भारत तेल में दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है। रूस से भारत एक लाख या दो लाख बैरल तेल मंगवा भी लेता है तो इससे भारत में तेल की कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उसके लिए बड़े मात्रा में तेल लाना पडेगा I मगर ऐसे में वहां तेल और गैस के भंडारों में हिस्सेदारी खरीदना सस्ता पड़ेगा। इस विकल्प पर भी भारतकी सरकार विचार कर रही है I यदि भारत सरकार यह कदम उठा लेती है तो उससे भारत की तेल की जरूरतों को लंबे समय तक के लिए पूरा करना आसान हो जाएगा ।

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